SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 247
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १०१ ) हाथ || दि० ॥ उपशी हवे महरे रे ॥ जि०॥ निर ख्यो नयणें नाथ ॥ दि० ॥ २ चरणे तेहने विलं बीयें रे ॥ जि० ॥ जेहथी सी काम | दि० ॥ फो कट गुंफेरो तिहां रे ॥ जि० ॥ पूछे नहि पण नाम ॥ दि० ॥ ३ ॥ कूडो कलियुग बोडिने रे ॥ जि० ॥ श्रा परह्या एकंत ॥ दि० ॥ पोपुं राखे घणा रे ॥ जि० ॥ पर राखे ते संत ॥ दि० ॥ ४ ॥ देव घा में देखिया रे || जि० ॥ श्रामंबर पटराय ॥ दि० ॥ निगय नहि पण सोडथी रे ॥ जि० ॥ श्राघा पसा रे पाय || दि० ॥ ५ ॥ सेवकने जो निवाजीयें रे ॥ जि० ॥ तो तिहां शानें जाय ॥ दि० ॥ निपट नीरागी हो वतां रे || जि० ॥ स्वामिप किम थाय ॥ दि० ॥ ६ ॥ मेंतो तुमने प्रदस्यो रे ॥ जि० ॥ नावें तुं जाल म जाण ॥ ० ॥ रूपविजय कविरायनो रे ॥ जि० ॥ मोहनवचन प्रमाण || दि० ॥ ७ ॥ इति ॥ c ॥ अथ श्री वासुपूज्य जिन स्तवनं ॥ ॥ चूनडी तो जींजे हो साहिबाजी प्रेमनी ॥ ए देशी ॥ ॥ प्रभुजीगुं लागी हो पूरण प्रीतडी, जीवन प्रा ए आधार || गिरुप्रा जिनजी हो राज, साहिब सुल जो हो माहरी वीनति ॥ दरिसण देजो हो दिल नरी, श्यामजी हो जगगुरु शिरदार ॥ १ ॥ सा० ॥ चा हीने दीजें दो चरणोनी चाकरी, यो अनुभव श्रम साज ॥ गि० ॥ इम नवि कीजें हो साहिबाजी सां नलो, कांइ सेवकने शिवराज ॥ २ ॥ गि० ॥ चूपसुं
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy