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________________ (१५३) लडियां ॥ रामविजय प्रभु सेवतां रे, लहियें सयल जगी || वधे सुख वेलडियां ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सुपार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥ नायता रे तुमें चाव्या गढ खागरे रे लाल ॥ ए देश ॥ ॥ सेवजो रे सामी सुपास जिणेसरु रे ॥ लाल, पू जीयें धरी म रंग रे लाल || मोरे मन मान्यो सा हेबो- रे लाल, प्रेमथी रे प्रीति बनी जिन राजनुं रे ॥ लाल || जेहवो चोलनो रंग रे लाल ॥ १ ॥ मोरे मन नान्यो सहिवो रे लाल || ए की ॥ धरजो रे धन पृथिव। राणी सती रे || लाल ॥ जायो जेणें रतन्न रे लाल ॥ मोरे० || दीपती रे दिसिकुमरी यावी तिहां रे ॥ लाल, करती कोडी जतन रे लाल ॥मो० ॥ ॥ २ ॥ जोरथी रे जिनमुख निरखी नाचती रे ॥ ला ल, हर्ष दीये आशीष रे लाल || मो० ॥ चाहती रे चिरंजीवो तुं बाजुडा रे ॥ लाल, त्रण जुवनना ईश रे लाल || मो० ॥ ३ ॥ फावती रे फरती फूदडली दीये रे || लाल, मदनर माती जेह रे लाल || मो० ॥ नाथने रे नेह नयण नरी जोवती रे || लाल, गुण गाती ससनेह रे लाल ॥ ४ ॥ दरें रे एम दुल रावी बालने रे लाल, पोहोती ते निज गेह रे ला ल || मो० ॥ प्रेमचं रे प्रभु वाधे मन मोहता रे ॥ लाल, दोयसें धनुषनी देह रे लाल || मो० ॥ ५ ॥ रागथी रे राजकुमरी रलीयामणी रे ॥ लाल, परण्या
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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