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________________ (१५०) ॥ मने संनव जिन' प्रीत, अविहड लागी रे॥ कां देखत प्रनु मुखचंद, जावत नागी रे ॥ १ ॥ जिन सेनानंदन देव, दीलडे वसीया रे॥प्रनु चरण नमे कर जोड, अनुनव रसीया रे ॥ २ ॥ तोरी धनुसय चार प्रमाण, उंची काया रे ॥ मनमोहन कंचन वान, तागी तोरी माया रे ॥ ३ ॥ प्रजु राय जितारी नंद, नयरों दीठो रे ॥ सावजी पुर शणगार, लागे मुने मीठो रे ॥ ४ ॥ प्रनु ब्रह्मचारी नगवान, नाम सुणा वे रे॥ पण मुक्तिवधू वशी मंत्र, पाठ जणाव रे ।। मुफ रढ लागी मनमांहे, तुफ गुण केरी र ॥ नहीं तुज मूर तिने तोल, सुरत गलेरी रे ॥ ६ ॥ ज़िन मदेर करी जगवान, वान वधारो रे ॥ श्री सुमति विजय गुरु शिष्य, दिलमां धारो रे ॥ ७॥ इति ॥ ॥अथ श्री अनिनंदन जिन स्तवनं ॥ ॥ घम घम घमके घूघरा रे, घूघरे दीरन दो रके घमके० ॥ ए देशी। श्री अनिनंदन जिन स्वा मीने रे, सेवे सुर कुमरीनी कोड के ॥प्रनुनी चाकरी रे ॥ मुख मटके मोही रहो रे, उनी आगल बे कर जोड के॥प्रनु० ॥ १ ॥ स्वर जीणे आलापती रे, गाती जिन गुण गीत रसाल के ॥प्रनु० ॥ ताल मृदं ग वजावती रे, देती अमरी जमरी बाल के॥प्रनु० ॥२॥ घम घम घमके घूघरी रे, खलके कटिमेखल सार के ॥ प्रनु० ॥ नाटिक नव नव नाचती रे, बो ले प्रनु गुण गीत उच्चार के ॥प्र० ॥३॥ सुत सिमा
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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