SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४८ ) ॥ अथ श्री रामविजयजीकृत चोवीश जिन ॥ ॥ स्तवन प्रारंभः ॥ ১৯০৫ ॥ तत्र ॥ ॥ प्रथम श्री कृपन जिन स्तवन ॥ ॥ योग माया गरवे मे जो ॥ ए देशी ॥ उलगडी यादिनाथनी जो, कांइ कीजियें मनने कोम जो ॥ ats करे को नाथनी जो, जेहना पाय नमे सुर कोड जो ॥ ० ॥ १ ॥ वादालो मरुदेवीनां नाडलो जो, राणी सुनंदाना हयानो हार जो ॥ त्रस्य नुव ननो नाहलो जो, महारा प्राण तपो आधार जो ॥ ० ॥ २ ॥ वाहाले वीश पूरव लख जोगव्युं जो, रूडुं कुमरपणुं रंगरेल जो ॥ मन मोलुं रे जिन रूपशुं जो, जाणे जगमां मोहन वेज जो ॥ ल० ॥ ३ ॥ प्रजुनी पांचों धनुषनी देहडी जो, लख पूरव त्रेशवराज जो ॥ लाख पूरव समता वरी जो, थया शिव सुंदरीवरराज जो ॥ उल० ॥ ४ ॥ एना नामथी नव निधि संपजे जो, वली अलिय विधन सवि जाय जो ॥ श्री सुमतिविजय कविराजनो जो, एम रामविजय गुण गाय जो ॥ उल० ॥ ५ ॥ इति ॥ अथ श्री अजित जिन स्तवनं ॥ ॥ सोना ते केंरुं महारुं बेडलुं रेलो, रूपला इंढोली
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy