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________________ (१४५) ना नही बीजे रे, शुभ अनुजव सुपराग रे ॥४॥ जमत जमत कहावियें रे, मधुकरनो रसस्वाद ॥ मा नविजय मनने कहे रे, रस चाखो आल्हाद रे॥५॥ ॥ अथ श्री नेमिजिन स्तवनं ॥ ॥ अब प्रनुगुं इतनी कद्रं॥ ए देशी ॥ नेमिजिणं द निरंजगो, ज मोहथलें जलकेली रे ॥ मोहना नद नटगोपी, एकलमल्ने नारख्या तेली रे ॥ १ ॥ सामि सलूणा साहिबा ॥ अतुलीबल तुं वडवीर रे ॥ सा॥ ए अांकणी ॥ कोश्क ताकी मूकती, अति तीखां कटा टनां बाण ॥ वेधक वयण बंधूक गोली, जे लागे जाये प्राप र ॥२॥सा०॥ अंगुली कटारी घोंचती, नबालति वेणी रुपाण रे ॥ सिंथो नालां नगामती, सिंगी जलनरे कोकवाण रे ॥३॥सा ॥ फूलदडा गोला नाखे, ज सत्त्व गढ़ें करे चोट रे ॥ कुचर्यु ग करि कुंजस्था , प्रहरती हृदयकपाट रे ॥४॥ सा० ॥ शील सन्नाह उन्नत सत्त्वे, अरि शस्त्रना गोला न लागा रे ॥ सोर करी मिय्या सवे, मोह सुनट दहो दीसे नागा रे ॥ ५॥ सा० ॥ तव नव नव योको मं मयो, सजी विवाह मंझप कोट रे ॥ प्रचु पण तस स न मुख गयो, नीसाणे देतो चोट रे ॥ ६ ॥सा ॥चा करी मोहनी बोडवी, राजुलने शिवपुर दीध रे ॥ापे रैवत गिरि चढी, नीतर संयम गढ लीध रे ॥ ७ ॥ सा० ॥ श्रमणधरम योमा लडे, संवेग खड्ग धृति ढा सरे ॥जाल केश नखाडतो, गुन नावना गडगडे
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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