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________________ (१३ए) रमेय ॥ जिहो मानसरें रमे हंसलो,लाला वायस खाइ जलेय ॥ जि०॥ २ ॥ जिहो तिम मिथ्यात्वी चित्तमां, साता तुज किम होये आनास ॥ जिहो तिहां कुदेव रंगें रमे, लाला समकित मन तुज वास ॥ जि॥३॥ जिहो हीरो कुंदनगुं जडे, लाला दूधने साकर यो ग॥ जिहो पलटे योगें वस्तुनो, लाला न होये गुण आनोग ॥ जि० ॥ ॥ जिहो विमल पुरुष रहेवा तणुं, लाला थानक विमल करेय ॥ जिहो गृहपतिने तिहां शी तृपा, लाला नाटक नचित ग्रहेय ॥ जि॥ ॥ ५ ॥ जिहो तिम तें मुफ मन निर्मलु, लाला कीg करते रेवास ॥ जिहो पुष्टि गुदि नाटक ग्रही, ला ला हूं सुखीयो थयो खास ॥६॥ जिहो विमले विमल मिली रह्या,लाला नेद जाव रह्यो नांहिं॥ जिहो मानविजय उवकायने, लाला अनुनव सुख थयो त्यांहिं॥.जि० ॥॥ ॥ इति ॥ १३ ॥ ॥ अथ श्री अनंत जिन स्तवनं ॥ ॥राग मारु ॥ देशी करे लडानी॥ ॥झान अनंतूं ताहरे रे, दरिसन ताहरे अनंत ॥ सुख अनंतमय साहिबा रे, विरज पण ननस्युं अनं त ॥ १ ॥ अनंत जिन आपजो रे ॥ मुफ एह अनंता चार ।। अ० ॥ मुझने नही अवरघू प्यार ॥०॥ तुऊने आपंतां शी वार ॥ अ॥ एह डे तुक यशनो गर ॥ अ० ॥ ए बांकणी ॥ आप खजीनो न खो लवो रे, नही मलवानी चिंत ॥ मारे पोते ने सवे
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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