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________________ (१०८) चंबाहुजिन स्तवनं ॥ ॥ अथ ॥ मन मोहना लाल ॥ ए देशी ॥ देवानंदन न रिंदनो रे ॥ जन रंजना लाल ॥ नंदन चंदन वा रे ॥ डुख जंजना लाल ॥ राणी सुगंधा वा नहो रे ॥ ज० ॥ कमल लंबन सुख खाए रे ॥ 5० ॥ १ ॥ पुरकर दीन पुरकला व रे ॥ ज० ॥ विजय विजय जयकारी रे ॥ 50 || चंड्बादु पुंमरी गिली रे ॥ ज० ॥ नगरीयें करे बिहा ररे ॥ 5 ॥ २ ॥ तस गुणगण गंगाज रे ॥ ज० ॥ मुक मन पावन कीध रे 5० ॥ फरि ने मेल किम ! 50 हुवे रे ॥ ज० ॥ प्रकरण नियम प्रसिद्ध रे || 50 ॥ ३ ॥ अंतरंग गुण गोठडी रे ॥ ज० ॥ निश्वय समकित तेह रे ॥ ० ॥ विरला कोइक जायो रे ॥ ज० ॥ तेतां ग म बेह रे || 5 || ४ || नागर जननी चातुरी रे ! ॥ ज० ॥ पामर जाणे केम रे ॥ ० ॥ तिम कुण जागे सांशुं रे ॥ ज० ॥ श्रम निश्चय नय प्रेम रे ॥ ० ॥ ५ ॥ स्वाद सुधानो जागतो रे ॥ ज० ॥ जाजित होय एक दिन्न रे || 5 || पण अवसरें जो जे लहे रे ॥ ज० ॥ ते दिन माने धन्न रे ॥ ६० ॥ ६ ॥ श्रीनय विजय विबुध तो रे ॥ ज० ॥ सेवक कहे सुष्णो देव रे ॥ 5० ॥ चंबा मुऊ दीजियें रे ॥ ज० ॥ निज पय पंकज सेव रे ॥ मुख० ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्री नुजंगजिन स्तवनं ॥ ॥ महाविदेह क्षेत्र सोहामणुं ॥ ए देशी ॥ भुजं गदेव नावें नजो, राय महाबलनंद || लाल रे ॥ म
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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