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________________ (एए) सुणतां लील विलास ॥ सासय सुख निधि संपजे ए ॥ ४ ॥ एह रास जे नणे नणावे, वर मयगल लब घर आवे । मनवंडित आशा फले ए॥४॥ इति श्री गौतमस्वामीनो रास संपूर्ण ॥ ५० ॥ अथ श्रीमयशोविजयजी उपाध्याकृत श्री वीश विदरमानजिन स्तवन प्रारंनः ॥ तत्र प्रथम श्री सीमंधरजिन स्तवनं ॥ भर आंबा आंबली रे ॥ ए देशी ॥ ॥ पुरकलवा विजयें जयो रे, नयरी पुंगरी गिणि सार ।। श्री सीमंधर साहिबा रे, राय श्रेयांस कुमार ॥ जिणंदराय धरजो धर्म सनेह ॥ ए आंकणी॥१॥ मोहोटा नाहना अांतरो रे, गिरुया नवि दाखंत ॥ शशि दर्शन सायर वधे रे, कैरव वन विकसंत ॥ ॥ जि० ॥ २ ॥ ठाम कुठाम नवि लेखवे रे, जग वर संत जलधार ॥ कर दोइ कुसुमें वासीयें रे, गया सवि आधार ॥ जि ॥ ३ ॥ राय रंक सरिखा गणे रे, उद्योतें शशि सूर ॥ गंगाजल ते बिदु तणो रे, ताप करे सवि दूर ॥ जि० ॥ ४ ॥ सरिखा सदुने तारवा रे, तिम तुम्हें बो महाराज ॥ मुफगुं अंतर किम करो रे, बांहे ग्रह्यानी लाज ॥ जि० ॥ ५ ॥ मुख देखी टीखं करे रे, ते नवि होय प्रमाण ॥ मु जरो माने सवि तणो रे, साहिब तेह सुजाण ॥जिन
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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