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________________ ( ए४ ) वीर जिएल, पेखवी रूप विशाल तो ॥ एह असंभव संभव ए, साचो इंड्जाल तो ॥ तो बोलावे त्रिजग गुरु, इंदजु नामे तो ॥ श्रीमुख संसाय सामि सवे, फेडे वेदपण तो ॥ १७ ॥ मान मेल्हि मद वेलि करे, जगतें नामें सीन तो ॥ पंचख्यासुं व्रत लियो ए, गोयम पहिलो सांस तो ॥ बंधव संजम तुणवि करे. निवे तो ॥ नाम लेइ यानास करें, तं पुण प्रतिबोधे तो ॥ २० ॥ इणि अनुक्रमें गण हररयण, थाप्या वीर ग्यार तो ॥ तो उपदेशे नु वन गुरु, संयमचं व्रत बार तो ॥ बिहु उपवासें पा रं ए, आपण विहरंत तो ॥ गोयम संयम जग सयल, जय जयकार करत तो ॥ २१ ॥ वस्तु तं ॥ इंदनूइ इंदनूइ चढिय बहुमान ॥ हुंकारो करि संच रिन्, समवसरण पुहतो तुरंतो ॥ इह संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फुरंतो || बोधबीज सजाय मने, गोयम वह विरत्त || दिरक लेइ सिरका सहिय, ग हर पय संपत्त ॥ २२ ॥ जाषा ॥ श्राज हुने सुविहा एए, प्राज पचेलिमां पुष्म नरो ॥ दीता गोयम सामि, जो नियनयणें अमिय जरो || सिरिगोयम गणधार, पंचसया मुनि परवरिय ॥ नृमिय करय विहार, न वियां जन पडिबोह करे ॥ समवसरण मजार, जे जे संसा उपजे ए ॥ ते ते पर उपगार, कारण पूछे मुनि पवरो ॥ २३ ॥ जिहां जिहां दीजें दिरक, तिहां तिहां केवल उपजे ए ॥ आप कन्हे अण ढुंत, गोयम दीजें
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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