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________________ (नए) गजलंडन गजगतिगामी, विचरे विप्रविजय स्वामी, नयरी विजया गुणधामी रे ॥ श्रीयुग ॥ ७॥ मात सुतारायें जायो, सुदृढ नरपति कुल आयो, पंमित जिनविजयें गायो रे ॥ श्रीयुग ॥ ए ॥ इति ॥ ॥ अथ नेमिजिनस्तवनं ॥ गरबानी देशीमां ॥ ॥ जश्ने रहेजो माहारा वालाजीरे, श्रीगिरनारने गोंख ॥ जश्ने॥ए आंकणअमें पण तिहां आवद्यु ॥माहा॥जिहारें पामीरां जोख ॥ज॥१॥जान ले इजूने गढें ॥ माहा॥आवी तोरण आप ॥ जय०॥ पशुयां पेखी पाढा वट्या ॥ माहा ॥ जातां न दीधो जबाप ॥ज॥॥ सुंदर आपण सारिखा ॥ माहा॥ जोतां नहीं मले जोड ॥ जय० ॥ बोल्यां अबोल्यां करो ॥ माहा॥.ए वातें तमने खोड ॥ जय० ॥३॥ ढुं रागी तुं वेरागी ॥ माहा ॥ जगमां जाणे सदु कोय ॥ ज०॥ रागी तो लागी रहे ॥माहा॥ वेरागी रागी न होय ॥ जय० ॥ ४ ॥ वर बीजो ढुं नवि वरूं ॥ माहा०॥सघला मेहेली सवाद ॥ जय० ॥ मोहनी याने जमली॥ माहा० ॥ महोटा साथें श्यो वाद ॥ जय० ॥५॥ गढ तो एक गिरनार ३ ॥ माहा० ॥नर तो वे एक श्री नेम ॥ जय० ॥रमणी एक राजीमती ॥ मादा॥पूरो पाड्यो जेणें प्रेम ॥ जय० ॥ ६ ॥ वा चक उदयनी वंदना ॥ माहा ॥ मानी लेजो माहा राज ॥ जय० ॥ नेम राजुल मुक्तं मल्यां ॥ माहा॥ सास्यां आतमकाज ॥ जय० ॥ ७ ॥ इति स्तवनं
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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