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________________ (७२) झान तरंग ॥ १ ॥ गति चारे कीधा, आहार अनंत निःशंक ॥ पण तृप्ति न पाम्यो, जीव लालची रंक ॥ उत्तहो ए वली वली, अणसानो परिणाम ॥ एथी पामीजें, शिवपद सुरपद गम ॥ ३ ॥ धन धना शालिनइ, खंधो मचकुमार ॥ अगसण आराधी, पाम्या नवनो पार । शिवमंदिर जाशे, करी एक अवतार ॥ आराधन केरो, ए नवमो अधिकार । ३॥ दशमे अधिकारें, महामंत्र नवकार ॥ मनथी नवि मूको, शिवसुख फल सरकार ॥ ए जपतां जाए, मुरगति दोष विकार ॥ सुपर ए समरो,चनद पूरवनो सार ॥ ४ ॥ जन्मांतरें जातां, जो पामे नवकार ॥ तो पातक गाली, पामे सुर अवतार । ए नव पद सरिखो, मंत्र न को संसार ॥ इह नव ने परनवें,सुख संपति दातार ॥ ५ ॥ जुन नीलने नीलडी, राजा राणी थाय ॥ नवपद महिमाथी, राजसिंह महा राय ॥राणी रत्नवती बेदु, पाम्यां ने सुरजोग ॥ एक जवथी लेशे, सिध्वधू संयोग ॥ ६ ॥ श्रीमतीने ए वली, मंत्र फल्यो ततकाल ॥ फणिधर फीटीने, प्रगट था फुलमाल ॥ शिवकुमरें योगी, सोवन पुरुसो कीध ॥ इम एणे मंत्रे, काज घणानां सीध ॥ ७ ॥ ए दश अधिकारें, वीर जिणेसर नांरख्यो ॥ अाराधन केरो, विधि जिणें चितमा राख्यो । तिणे पाप पखाली, नव जय दूरे नारख्यो ॥ जिन विनय करंतां, सुमति अमृत रस चाख्यो ॥ ॥ इति ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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