SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ८० ) मोस जंजाल तो ॥ ८ ॥ त्रिविध त्रिविध वोसिरावि यें ॥ सा० ॥ पापस्थान अढार तो ॥ शिवगति श्रा राधन तणी ॥ सा० ॥ ए चोथो अधिकार तो ॥ एए ॥ ॥ ढाल पांचमी ॥ ॥ हवे निसुष्णो इहां यवीयाए । ए देशी ॥ ॥ जनम जरा मरणें करी ए, ए संसार असार तो ॥ कस्यां कर्म सहु अनुत्तवें ए, कोइ न राखणहार तो ॥ १ ॥ शरण एक अरिहंतनुं ए, शरण सि६ न गवंत तो ॥ शरण धर्म श्रीजैननो ए, साधु शरण गु सवंत तो ॥ २ ॥ अवर मोह सवि परिहरी ए, चा र शरण चित्त धार तो ॥ शिवगति आराधन तणो ए ए पांचमो अधिकार तो ॥ ३ ॥ या नव परजव जे करयां ए, पाप कर्म के5 लाख तो ॥ श्रात्मसाखें ते निंदीयें ए, पडिक्कमियें गुरु साख तो ॥ ४ ॥ मि यामति वर्त्तावियां ए, जे नांख्यां उत्सूत्र तो ॥ क्रुमति कदाग्रहने वरों ए, वली थाप्यां उत्सूत्र तो ॥ ५ ॥ घड्यां घडाव्यां जे घणां ए, घंटी हल हश्रीया र तो ॥ जव जव मेली मूकीयां ए, करता जीव सं हार तो ॥ ६ ॥ पाप करीनें पोषिया ए, जनम जनम परिवार तो ॥ जनमांतर पोहोता पढी ए, कोई न कीधी सार तो ॥ ७ ॥ या नव परजव जे कलां ए, म अधिकरण अनेक तो ॥ त्रिविध त्रिविध वोसि रावीयें ए, आणी हृदय विवेक तो ॥ ८ ॥ डुकृत निंदा एम करी ए, पाप कस्यां परिहार तो ॥ शिवग
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy