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________________ (७४) केवल आली रे, वस्या स्वातियें शिव वरमाली रे, करे उत्तम लोक दीवाली ॥ ६ ॥ स ॥ अंतरंग अलब निवारी रे, सुन सऊनने उपगारी रे, कहे वीर विनु हितकारी ॥ ७ ॥ स ॥ इति ॥ . ॥ अथ श्री सिम नगवाननुं स्तवन ॥ ॥ सिनी शोना रे शी कहुँ । ए अांकणी ॥ सिम जगत शिर शोनता, रमता पातमराम ॥ लदन लीलानी लेहेरमां, सुखिया ने शिव गम ॥ मि ॥ ॥१॥ महानंद अमृतपद नमो, सिदि कैवल्य नाम ॥ अपुनर्नव ब्रह्मपद वली, अक्ष्य सुख विशराम ॥ ॥ सि० ॥ ॥ संश्रेय निःश्रेय अक्षरा, दुःख सम स्तनीहाण ॥ निवृत्ति अपवर्गता, मोद मुक्ति निर वाण ॥ सि ॥३॥ अचल महोदय पद लयुं, जोतां जगतना गत ॥ निज निजरूपें रे जूजूयां, वीत्यां कर्म ते आत ॥ सि ॥४॥ अगुरुलघु अवगाहना, नामें विकसे वदन ॥ श्री शुनवीरने वंदतां, रहियें सुखमां मगन्न ॥ सि ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥अथ श्री आराधनानुं स्तवन प्रारंन ॥ ॥ दोहा ॥ सकल सिदि दायक सदा, चोवीशे जिनराय ॥ सहगुरु सामिनि सरसति, प्रेमें प्रणमूं पाय ॥१॥ त्रिनुवनपति त्रिशला तणो, नंदन गुण गंजीर ॥ शासन नायक जग जयो, वर्षमान वड वीर ॥ ॥ इक दिन वीर जिणंदने, चरणे करि प रणाम ॥ नविक जीवना हित नणी, पूछे गौतम
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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