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________________ (६५) निर्मल थयें, बलिहारी तस नामनी ए ॥१२॥ हस्तिनागपुरें पांमुरायनी, कुंता नामें कामिनी ए॥ पांव माता दशे दशारनी,बेहिन पतिव्रता पदमिनी ए॥ १३॥ शीलवती नामें शीलवतधारिणी, त्रिवि तेहने वंदीयें ए ॥ नाम जपंतां पातक जाए, दरिमण उरित निकंदीयें ए ॥ १४ ॥ निषिधा नगरी नलह नरिंदनी, दमयंती तस गेहिनी ए ॥ संकट पडतां शीलज राग्व्यु, त्रिनुवन कीर्ती जेहनी ए॥ १५॥ अनंग अजिता जगजन पूजिता, पुष्पचूला ने प्रना वती ए॥ विश्वविख्याता कामित दाता, शोलमी सती पदमावती ए॥ १६ ॥ वीरें नांवी शास्त्रे साखी, नद यरतन नांखे मुदा ए॥ वाहाणुं वातां जे नर नशे, तेलेदेशे सुरव संपदा ए ॥१७॥इति शोलसतीनो बंद ॥ ॥अथ चार मंगल ॥ ॥सिदार्थ नूपति शोहे क्षत्रियकुंमें, तस घेर त्रि शला कामिनी ए॥ गजवर गामिनी पोढीय नामिनी, चन्द सुपन लहे जामिनी ए ॥१॥त्रुटक ॥ जामिनी मध्ये शोलतां रे, सुपन देखे बाल ॥ मयगल वृष नने केसरी, कमला कुसुमनी माल ॥२॥ इंछ दिन कर ध्वजा सुंदर, कलश मंगल रूप ॥ पद्म सर जल निधि उत्तम, अमर विमान अनूप ॥३॥ रत्ननो अंबार उज्ज्वल, वन्हि निर्धूम ज्योत ॥ कल्याण मं गलकारी माहा, करत जग उद्योत. ॥४॥ चन्द सु पन सूचित विश्व पूजित, सकल सुख दातार ॥ मं
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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