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________________ ( ५६ ) चुने प्रणमी, देजो सेव तुमारी रे || संसा० ॥ ५॥ ॥ अथ पार्श्वजिन स्तवनं ॥ ॥ लाखीयो सोहावे जिनजी, फुलांनो गले हार ।। ग्राणीने सोहावे जिनजी, अंगीयां जडाव । मोरा पासजी हो लाल, संकट बोडाव स्वामी विघ्न निवा र ॥ १ ॥ एकणी ॥ पदमणी चाली पूजवाने, करी शोल सिणगार ॥ पाए धमके घूघराने, नेतरनो ऊपकार ॥ मोरा० ॥ २ ॥ मेघमाली देवताने, कीधो घमघोर || गाजे गगन वीजलीने, पाणी वरपे जोर ॥ मो० ॥ ३ ॥ ध्यानथकी नवी चूका, प्रतु पास जिद || देही कष्ट निवारवाने, आसावे धर लिंद ॥ मो० ॥ ४ ॥ गोडी पारस पूजो जिम, होए रंग रेल || देखी मूर्ति पासजीनी, जाणीएं मोहन वेल ॥ मो० ॥ ५ ॥ तमक उमक चालतीने, घूघर डी घमकार || तातायेई ताल वाजे, देवतानी चाल ॥ मो० ॥ ६ ॥ केशर चंदन वशी घणाने, कस्तूरी घनसार ॥ जे नर नावें पूजशेने, उतारे नवपार ॥ मो० ॥ ७ ॥ तुंहीं मारो साहेबो ने तुंहीं जीवन प्राण || तुमने माने देवताने, मोहोटा राणो राण ॥ मो० ॥ ८ ॥ पंमितमांहे शिरोमणिने, कनक वि मल गुरु हीर ॥ चरण कमल सेवे सदाने, केसर क वियण धीर ॥ मो० ॥ ए ॥ इति पार्श्व जिन स्तवनं ॥ ॥ अथ शांतिजिन स्तवनं ॥ , ॥ दोहा ॥ वे कर जोडी वीनवुं, सुपो जिनवर श्रीशां
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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