SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (५४) सार ॥ ढुं० ॥ ७ ॥ संवत सत्तर रे के बरस चोराएं ए, रूडो रूडो नाचमास ॥ स्तवना कीधी रे के पर व पंजसणे, नित्यनान प्रचुजीनो दास ॥ढुंगा ॥अथ शांतिजिनस्तवनं ॥ ॥ शांति प्रन वीनति एक मोरी रे,नारी अखडी कामणगारी॥ शांति ॥ विश्वसेन राजा तुज ताय रे, राणी अचिरा देवी माय रे ॥ तुंगोजपुर नगरी नो राय ॥ शां० ॥ १ ॥ प्रनु सोवन कांति विराजे रे, मुकुटे हीरा मणि बाजे रे ॥ तारी वाणी गंगापूर गाजे॥ शां० ॥ २ ॥ प्रच चालीश धनुपनी काया रे, नवि जनना दिलमां नाया रे ॥ कांई राज राजे सर राया ॥ शां० ॥ ३ ॥ प्रनु माहारा बो अंतर जामी रे, करुं वीनति हुँ शिर नामी रे॥ चन्द रा जना बो तुमें स्वामी॥ शां० ॥ ४ ॥प्रनु पर्षदा बारे माहे रे, दीए देशना अधिक नन्हाहें रे. ॥ प्रज अंगी एं नेट्या नमाहे ॥ शां० ॥ ५ ॥ श्रावक श्राविका बहु पुण्यवंतां रे, शुन करणी करे महंता रे ॥ शांति नाथना दरिसण करता ॥ शां० ॥ ६ ॥ संवत अढा र अहा सार रे, मास कल्प कयो तिणि वार रे॥ सूरि मुक्तिपदना धार ॥ शां० ॥ ७ ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥अथ सिहाचलस्तवनं ।। ॥ सिमाचल गिरि नेटया रे, धन्य नाग्य हमारां ॥ विमलाचल गिरि नेटया रे, धन्य नाग्य हमारां ॥ एगिरिवरनो महिमा मोहोटो, कहेतांनावे पार ॥राय
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy