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________________ (42) गाय हो । जि० ॥ २ ॥ जि० ॥ तुज रूपें रतिपति धसे रे, अंगथी लाजी रह्यो अनंग हो । जि० ॥ जि० ॥ तुज उपमा कोई जग नहिं रे, तुं वे गुणराशिनो संग हो ॥ जि० ॥ ३ ॥ जि० ॥ नागपति धरणीने रे, करु या करीने दीधो नवकार हो । जि० ॥ जि० ॥ शोल सहस अणगारना रे, सादुणी पडत्रीश सहस वि स्तार हो ॥ जि० ॥ ४ ॥ जि० ॥ जादवनी नाठी जरा रे, तो हवे मनें करो सुपसाय हो । जि० ॥ जि० ॥ धरणीधर पद्मावती रे, सेवे पार्श्वयक वनि पाय हो ॥ जि० ॥ ५ ॥ ज० ॥ पास आाश मुज पूरवा रे, साचो शंखेश्वर महाराज हो । जि० ॥ जि० ॥ श्रीगु रुपद्मविजय तो रे, मागे रूपविजय शिवराज हो ॥ जि० ॥ ६ ॥ इति पार्श्वजिनस्तवनं ॥ ॥ अथ शांतिजिनस्तवनं ॥ || शांतिजीनुं मुखडुं जोवा जणी जी, मुफ मनडुं रे लोनाय ॥ चितडुं जाणे रे कडी मनुं जो, पण प्रभु किम रे मलाय || शां० ॥ १ ॥ देव न दीधी मु जने पांखड जी, या हुं किम रे हज़र ॥ पण प्रभु जाणजो वंदना जी, तमराम सनूर ॥ शां० ॥ २ ॥ गजपुरी नगरीनो राजीयो जी, चिरा देवी नंदन एह ॥ जिम रे पारेवडं राखीयुं जी, तिम प्रभु राखजो नेह ॥ शां० ॥ ३ ॥ मस्तकें मुकुट सोहामणो जी, कानें कुंमल श्रीकार ॥ बांहे बाजूबंध वेरखा जी, कंठ डे नवसरो हार ॥ शां० ॥ ४ ॥ आज नजें रे दिन
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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