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________________ ( ए) ध्यान गुंकल मन ध्यावता ॥ नि ॥ वैशाख गु दि दशमी उत्तरा जोगें सोहावता ॥ जि० ॥ ६ ॥ शालि वृद तलें प्रनु पाम्या केवल नाय रे ॥जि०॥ लोकालोक तणां परकाशी थया प्रनु जाण रे॥जि॥ इंश्नति प्रमुख प्रतिबोधी गए पर कीध रे ॥ जि०॥ सं घ थापना करीने धर्मनी देशना दोध रे ॥ जि॥७॥ चौद सहस जला अणगार प्रमुनें शोजता ॥ जि० ॥ वली साधवी सहस बनीश कही निर्लोजता ॥ जि०॥ उंगणशात सहस एकलाख ते श्रावक संपदा ॥जि०॥ तिन लाखने सहस अढार ते श्राविका संमुदा ।। जि० ॥. ॥ चौद पूर्वधारी त्रगशे संव्या जागीय ॥जि० ॥ तेरशे महिनाएंगी सातरों केवली वखाणी यें। जि॥लब्किधारी सातशे विपुलमति वली प चशे ॥ जिवली चारशे वादी ते प्रनुजी पासें वसे ।। जि० ॥ ए॥ शिष्य सातशेने वली चौदरों साधवी सिद थया । जि० ॥ ए प्रनुजीनो परिवार कहेतां मन गहगह्यां ॥ जि ॥प्रनुजीयें त्रीश वरस घरवासें जोगव्यां ॥ जि०॥ बदमस्थ पणामां बार वरस ते जो गव्यां ॥ जि० ॥ १०॥ त्रीश वरस केवल बेंहेंतालीश वरस संजम पणुं ॥ जि० ॥ संपूरण बहोंत्तर वरस आयु श्रीवीर तj॥ जि० ॥ दीवाली दिवसें स्वाती न दत्र सोहंकर ॥ जि० ॥ मध्यरातें मुक्ति पहोता प्रनु जी मनोहरु ॥जि०॥११॥ ए पांच कल्याणक चोवी शमा जिनवर तणां। जि० ॥ ते जगतां गुणतां हर
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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