SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 66
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०) (तृतीय भाग पयादि लेख उसकी आज्ञा के विना चुपके चुपके वाच लेते है। यह सब एक प्रकार की चोरी है। उपदेशक, लेखक या वक्ता किसी के विचारो या लेखो की नकल करके अपना नाम जाहिर करे, व्यापारी एक चीन दिखलाकर उसके बदले दूसरी चीज दे दे, अच्छी दिखाकर खराव दे दे, अवसर से लाभ उठाकर बहुत नफा ले, घोला दे, सट्टा या जुआ खेले, हक से ज्यादा ले, इन सब बातो का चोरी मे समावेश होता है। कारीगर या गुमास्ता पूरा मिहनताना लेकर पूरा काम न करे, दूसरे को मिहनत से आप फायदा उठावे, अधिक लाभ लेकर दूसरे के गुजरान को धक्का पहुंचावे, यह सब छोटी-मोटी चोरी ही है । श्रावक को ऐसा करने का सदा ध्यान रखना चाहिए । अस्तेय का अतिचार : (१) अपनी इच्छा या आज्ञा के बिना कोई आदमी चोर करके कोई वस्तु लाया हो तो उसे ले लेना 'तेनाहडे' (स्तेनाहृत दोप गिना जाता है । ऐसा काम लालच के कारण होता है इस प्रकार चोरी की वस्तु खरीदने से चोरी की आवृत्ति य उत्तेजन मिलता है। (२) किसी भी प्रकार की चोरी के लिए किसी की सहा. यता करना, या दूमरे में चोरी कराना अथवा ऐसे कागो :: गहमत होना, यह सब 'तक्या गपओगे' (नम्करप्रयोग) नाम दोप (अतिचार) है। (c) जुदे-जुदे राज्य माल को निकाम या आयात प अकुम रखते है । आने-जाने वाले माल पर चुगी लगाते हैं
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy