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________________ ५८) ( तृतीय भाग मंतए । ( ४ ) मोसुवएसे (५) कूडलेहकरणे । तस्स मिच्छामि दुक्कड | अर्थ दूसरा अणुव्रत स्थूलमृपावाद से विरमण । वह मृपावाद पाँच प्रकार का कहा गया हैं । वह इस प्रकार - ( १ ) वर-कन्या सब झूठ ( २ ) पशु संबंधी झूठ ( ३ ) भूमि सबधी झूट (४) धरोहर को हजम करने सवधी झूठ ( ५ ) झूठी गवाही । इत्यादि मोटा झूठ बोलने का पच्चक्खाण | में जीवन - पर्यन्त दो करण तीन योग से मृपावाद (झूठ ) बोलू नहीं, बुलवाऊँ नहीं, मन, वचन, काय से । ऐने दूसरे मृपावाद विरमण व्रत के पाच अतिचार जानने योग्य है, आचर योग्य नहीं है । वे इस प्रकार हैं । मूल (१) सहसव्यक्खाणे - बिना सोचे-विचारे सहसा झूट बोला जाना अर्थ (२) रहग्समाखाणे - किसी की गुप्त बात प्रकट करना । (३) सदारमंतए - अपनी स्त्री या मित्र का गुप्त भेद प्रकट करना । लूटा उपदेश या खोटी सलाह देना झूठा केस - दस्तावेज वगैरह लिसना तत्स मिच्छामि दुक्कडं । (४) मोतुबएसे - (५) कूडलेहकरणे रवा का दूसरा अर्थ लम्बा विचार किये ना बोलना भी दिया जाता है ।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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