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________________ (तृतीय भा लिखते हैं । कितने ही वकील झूठा मामला अपने हाथ में लेक अपने मुवक्किलो को झूठी बाते समझाते हैं। फरियादी झूठं फरियाद करते है । बात को बदल देते है । झूठे गवाह तया करते है । गवाह भी झूठी गवाही देते है । कोई दूसरो की गुप्त बात को जाहिर कर देते है । दूसरों की निंदा करते है। ऐस करने से सत्य की रक्षा नही होती वल्कि हिंसा का भी दो लगता है । अपने शरीर के कोमल भाग में लोहे का काटा चुभः पर जैसी वेदना होती है, वैसी ही वेदना खराव भाषा बोलने। दूसरो को होती है। यह तो हुई लिखने और बोलने की बात । लेकिन असत विचार और असत्य वर्ताव के विषय में भी यही बात समझ लेना चाहिए । खोटी कल्पना करना वगैरह असत्य विचारो भी दोप लगता है । इसी प्रकार हमारे हरेक अनुचित काम दूसरो को हानि पहुचाने वाले कार्य भी असत्य ही हैं। इस वातो को जानकर त्याग करना चाहिए । सत्य व्रती के कर्त्तव्य :- . (१) सच्चा, सभ्य, मधुर, थोडा अर्थवाला, प्रयोजनवाना बोलना, लिसना और विचारना सीखना चाहिए। (२) गन, वाणी और काया के कार्यों में एक हो जाना चाहिए । अर्थात् सत्य हा विचारना और जैसा विचार हो वैस ही कहना या लिखना और बैगा ही अमल में लाना । (3) जहां दूसरों के प्रति अमत्य या अप्रिय मत्य बोल ' झी जरूरत आ पड़े वहां शश्य हो तो मौन रखना ।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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