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________________ जैन पाठावली) होने के कारण हिसा, असत्य वगैरह पापो से पूरी तरह निवृत्त नही हो सकता, अर्थात् जो गृहस्थ जीवन की मर्यादा में रहअपनी शक्ति के अनुसार अहिंमा, मत्य आदि व्रतो को मर्यादित रूप में स्वीकार करता है, उसके व्रत अणुव्रत कहलाते हैं। इत अणुव्रतो को धारण करने वाला " अणुव्रतधारी " या गहस्थ श्रावक अथवा अगारी कहलाता है। . .. (२) महावत ( सर्वविरति )-हिंसा आदि पापों को, मन, वचन, काय से न करना, न कराना और न उनका अनुमोदन करना, इस प्रकार की प्रतिज्ञा से पूरी तरह दोपो का त्याग करने और अहिंसा आदि व्रतो का पालन करने के लिए घर-घर को त्याग देना ही आवश्यक होता है । इसलिए ऐसे महाव्रतधारी अनगार कहलाते है। उनकी राग-द्वेष की गाठ ढीली पड़ जाती है या छूट जाती है । इस कारण उन्हे निर्ग्रन्थ भी कहते हैं । ऐसे अनगार पुरुष साधु कहलाते है और अनगार स्त्रिया साध्विया कहलाती है। सक्षेप में कहा जा सकता है कि दोषो की पूरी तरह निवृत्ति को महावत कहते है और थोडे अग मे निवृत्ति को अणुव्रत या देशविरति कहते है । महाव्रत पांच है: अर्थ (१)सव्वाओ पाणाइ:- । मन वचन और काय से सब प्रकार की हिंसा से पूरी तरह वायाओ विरमण वत छूटना अहिंसा महावत है। (२) सव्वाओ मुसावायाओ ( मृपावाद से सर्वथा छूटना, विरमण व्रत : सत्य महावत है।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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