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________________ D ३० ) ( तृतीय भाग ? 1 अर्थ करने मे 'पर' शब्द रखने को क्या आवश्यकता इसलिए ऐसा अर्थ करना ठीक नही । जैन आगमो आत्मा के लिए 'स्व' शब्द और पुद्गल के लिए 'पर' का व्यवहार किया जाता है । पाखड शब्द व्रत के अर्थ मे है । जो लोग सुख पाने के लिए व्रत, नियम या प्रत्याख्यान वगैरह करते है, ऐसे ( पुद्गलानदी वेपधारी) लोगो की प्रशंसा नही करनी चाहिए । ऐसे लोगो की प्रशसा करने से उनकी पुष्टि होती है, इस कारण समकिन में दोप लगता है । (५) परपाखंडसंस्तव ( परिचय ) कुदर्शनी के साथ सहवास तथा अधिक घनिष्ठता नही रखनी चाहिए । ऐसे लोगो का बखान करने से तथा अधिव परिचय करने में श्रद्धा में बाधा पड़ती है । इसी कारण य अतिचार है । ऊपर बतलाये पांच दोपो का त्याग कर देना चाहि और जो लोग धर्म-मार्ग से, भूल में पड़े है, उन्हें सन्मार्ग प लाने का प्रयत्न करना चाहिए । माधर्मी के प्रति सगे भाई के समान प्रेमभाव होना चाहिए । सत्य का आचरण और सत्यभाषण करके धर्म की प्रभावना करनी चाहिए । ऐसा करने से धर्म का प्रचार होना है । ·
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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