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________________ L ! { तृतीय भाग ) 11 ८२२५ (३) नाक का विषय गन्ध बैठता भौरा कमल पर - गन्ध का लोभी बना, फिर बन्द हो जाता उसी में गन्ध-लोलुपता सना । आता द्विरद? खाता कमल लेता भ्रमर के प्राण है, सोच मानव ! विषय-विष का क्या बुरा परिणाम है ॥ (४) आंख का विषय रूप हाथ मे ले - दीप कहिए कूप में को जात है. -दीप- की युति देख किन्तु पतग मन ललचात है । वह दीप में ही भस्म होता मूर्खता अप्रमाण है, सोच मानव ! विषय विष का क्या बुरा परिणामहे || (५) कान का विषय शब्द वन में शिकारी पहुँचकर गाता मधुर संगीत है, | भोला हिरन जाता निकट होता नही भयभीत है । हा । तब शिकारी प्राण लेने छोड देता बाण है, सोच - मानव ! विषय-विष का क्या बुरा परिणाम है ।। द्विरद हाथी । २ अप्रमाण बेहद । 4
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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