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________________ १८६) ( जैन पाठावली जेठ का महीना था। सूरज की धधकती किरणे पृथ्वी पर पड़ रही थी। गरम लू चल रही थी। पक्षी घटदार वृक्षो मे भी अकुला रहे थे। नगर के कोई-कोई लोग ग्रीष्म-गृह के फुहारो का सेवन कर रहे थे और कोई-कोई मकान बन्द करके भोयरे का शरण ले रहे थे। ऐसे समय मे नन्दन मणियार पोपधशाला में बैठा है। वह एक श्रीनत गृहस्थ है । उसके धन का पार नही है। वह जितना धनवन् है उतना ही बुद्धिमान् है। भगवान् महावीर के सत्सग से जैनधर्म के प्रति उसकी रुचि बढ गई थी। उसने श्रावक के बारह बन धारण किये थे। बारह व्रतो मे से ग्यारहवा पोपधवत कहलाता है। चौवीस घटो तक उपवास रखना, शरीर का शृगार न करना ब्रह्मचर्य का पालन करना और धर्मस्थानक में रहकर धर्मक्रिया करना पौषधवत कहलाता है । ऐसे तीन दिन का पोषधवत नन्दन मणियार ने ग्रहण किया था। टेक. व्रत या प्रतिज्ञा लेना धर्म का अग है। यह सत्य है, मगर व्रत लेने के बाद उसका वरावर पालन करना चाहिए साथ में उसके पालन करने में सयम और श्रद्धा होनी चाहिए । श्रद्धा और धीरज सत्सग से बढती है और कुसग से घटती है । नन्दन मणियार कुसगति में पड़ गया था। कहावत है 'सोहबते असर।' सगति का आसर पडे विना नहीं रहता। इम कथन के अनुसार नन्दन की श्रद्धा इन दिनो कुछ कम हो गई थी।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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