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________________ - तृतीय भाग ) राजा विचार में पड़ गया, क्योकि बात तो साफ झूठी थी, मगर काणे को कैसे समझाया जाय ? आखिर- राजा ने अपने जमाता धन्ना को बुलाया । धन्ना के हाथ में यह मामला -सौप दिया गया। धन्ना ने अपनी बुद्धि लगाकर कहा-काणा भाई । तुम्हारी वात सच्ची होगी। सेठ आँखे गिरवी रखनेका व्यापार करते हैं। इनके यहाँ बहुत-सी आँखें होगी उनमें से तुम्हारी आँख को पहचान लेना कठिन है । इसलिए नमूने के लिए तुम अपनी दूसरी आंख दे दो तो उससे मिलान करके तुम्हारी आँख खोजी जा सके। यह सुनकर काणे का चेहरा फक हो गया। नमूने के लिए अपनी आँख निकाल कर दे तो अधा हो जाय। अखिर काणे की ठगविद्या प्रकट हो गई। ठगाई के बदले उसे दड दिया गया। गाँठ की हजार मोहरे देवर और निराश होकर घर लौट जाना पडा । सेठजी की प्रसन्नता का पार न रहा । चाह रे धन्ना का न्याय । धन्य है धन्ना की बुद्धि । राजगृही नगरी मे धन्ना की बुद्धि का डका वजने लगा। काणे जैसे लोग ठगाई की विद्या भूल गये । नगरी मे वहुत-सा सुधार हो गया। गोभद्र सेठ की एक कुंवारी कन्या थी। उसका नान सुभद्रा था। सुभद्रा का धन्नाके साथ विवाह हुआ। राजकुमारी सेठ-कुमारी तथा दूसरी छह इस प्रकार आठ कन्याओ के साथ उसका विवाह हुआ था। एक बार धन्ना अपने महल के छज्जे मे बैठा था। उसने
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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