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________________ तृतीय भाग) पशु पक्षियो की करुण पुकार नेमिनाथ के कानो में पड़ी। उन्होने सारथी को रथ खडा करने की आज्ञा दी। पूछने पर मालूम हुआ कि यह सब पशु-पक्षी बरातियो के भोजन के लिए है। नेमिनाथ ने विचार किया-'अहो ! मेरे निमित्त यह पाप । यह विचारते-विचारते नेमिनाथ का हृदय उमड आया । दया के कारण उनकी आँखो मे आँसू आ गये। __ दूसरो को खुश करने के लिए मनुष्य कितना अनर्थ कर बैठता है । नेमिनाथ यह सोचते-सोचते बहुत गहराई तक पहुँच' गये । मै किस लिए विवाह करता हूँ ? विवाह से मुझको या ससार को क्या लाभ होगा? सतान प्राप्त होगी ? लेकिन सतान के लिये शक्ति लगाने की अपेक्षा आत्मकल्याण में शक्ति क्यो न लगाई जाय ? आत्मकल्याण के मार्ग में स्थिर हुए विना कुटुम्ब, समाज, देश या विश्व का उद्धार कैसे हो सकता है ? इस तरह सोचकर रथ वापिस लौटाया । नेमिनाथ, राजुल के पति बनने के बदले मुक्ति सुन्दरी के पति बनने के लिए तैयार हुए। राजुल यह खबर सुनकर बेहोश होकर गिर पडी । काले भौरे के समान बालो का जुडा खुल गया । वेणी जमीन पर लोटाने लगी । आभूषण फीक पड़ गए। उसकी सखियाँ हवा करने लगी और ढाढस बंधाने लगी। थोड़ी देर मे राजुल होश में आई । इतने में माता-पिता भी आ पहुचे । उन्होने कहाविटिया ! चिन्ता मत कर । हम इससे भी अधिक सुन्दर वर खोज निकालेगे ।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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