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________________ ( तृतीय भाग इस प्रकार ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप- ये चारो मोक्ष के मार्ग है । इनका विशेप विवरण आगे दिया जायगा। इस पाठ द्वारा गुरुदेव से दिवस-सबधी प्रतिक्रमण करने की आज्ञा मांगी जाती है ज्ञान, दर्शन,चारित्र और तप की प्रार्थना करते हुए, अपने से हुई भूलो को समझने के लिए 'काउस्सग्ग' करने की इच्छा की गई है। । पाठ तीसरा ___ इच्छामि ठाइडं काउम्सग्गं ( अतिचार चिन्तन की इच्छा ) पाठ का हेतु : इस पाठ मे दिवस सम्बन्धी दोषो की आलोचना है । आलोचना अर्थात् विचार या खोज । अपने आपकी खोज करना अपनी असलियत का विचार करना। जैसे मैं जैन श्रावक हूँ मुझे श्रावक के व्रतो का पालन करना ही चाहिए । जैन सूत्रो का स्वाध्याय करना ही चाहिए । सत्य के मार्गपर चलना ही चाहिए । जो कत्र्तव्य कार्य है वह मेरे द्वारा होना ही चाहिए। ज्ञान, दर्शन और श्रावक के चारित्र सम्बन्धी व्रतो को पालना ही चाहिए। मुझे शुभ ध्यान धरना चाहिए। अशुभ ध्यान त्यागना चाहिए । __ अगर ऐसा न हुआ हो तो इस बात का विचार करके भविष्य में फिर कभी ऐसा न हो और इस समय जो कुछ हो गया है उसका फल मुझे न मिले, इस प्रकार की भावना करने का यह पाठ है:
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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