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________________ १४४) (जैन पाठावली है फिर भी कस्तूरी की कद्र की जाती है । ढाक के फूलो को कौन पूछता है ? सुसुमारपुर के राजा दधिपर्ण के पास कुवडा नल रहने । लगा । वह मजेदार रसोई बनाता है। सूर्य की किरणो से । खीर बनाने की कला भी उसे आती है। किसी तरह दमयन्ती को नल का पता चल गया । उसने अपने पिता से सारी बात कही । पिता ने कोई वहाना करके दधिपर्ण को न्यौता दिया । दधिपर्ण का कुवडा रसोइया भी . साथ गया । वहां पहुंचने पर सब को विश्वास हो गया कि यही नल है। नल और दमयन्ती का फिर मिलन हुआ । धन्य है ऐसे । नल को चाहने वाली सती दमयन्ती । नल ने कुबेर से अपना राज्य फिर ले लिया । दमयन्ती फिर महारानी बन गई । कुछ दिनो वाद उसको एक बालक की प्राप्ति हुई । उसका नाम रक्खा गया-पुष्पकर । कुमार के वडा होने पर उसे राज्यगद्दी सौंपकर राजा नल और महारानी दमयती दोनो ने ही आत्मा का कल्याण किया । सुवाहुकुमार (१) धन्य धरिणी के सु-सुत, कुंवर सुबाहुकुमार, राज तजा तृणक्तु तथा तजी पांच सौ नार ।
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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