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________________ तृतीय भाग ) ( १३९ एक बार छोटे भाई कुबेर के साथ जुआ खेलते-खेलते नल राजपाट हार बैठा । कुबेर को डर लगा कि भाई यहाँ भौजूद रहेगे तो प्रजा मुझे राजा नही मानेगी । 1 यह सोचकर कुबेर ने कहा- भाई साहब । राज्य अब 2 मेरा है । मेरे राज्य की हद में आप न रहे तो अच्छा है । नल ने कहा - लो, यह चला ! तू मजे से राज्य कर - 1 नल ने जो कपडे पहन रक्खे थे, उन्ही कपडो के साथ - नल चल दिये । दमयन्ती को खबर लगी कि पतिदेव की यह हालत हुई है ! भिखारी की तरह जा रहे हैं। आखिर वह भी साथ हो गई | नल की छाया नल के बिना कैसे रहती ? स्त्री की परख ऐसे ही हालत मे होती है । नल ने दमयन्ती को बहुत रोका, मगर दमयन्ती अनुनय-विनय करके पति के पीछे-पीछे चलने लगी । दोनो जने दूर से दूर जा रहे हैं । वे चलते ही जा रहे हैं । वे राज्य की हद लौंध गये । अब इस अनजान जगह में कौन उन्हे पहचानता है ? मगर पेट से छुटकारा कैसे मिल सकता है ? इस गइहे को भरने के लिए कपडे बेचे दमयन्ती के आभूषण बेचे । पर कितने दिनो तक काम चलता ? अव उनके पास तन ढँकने को सिर्फ एक-एक ही कपडा बाकी रह गया । 1 J कहाँ निषध का राज्य और कहाँ भूख का यह राज्य कहाँ सुन्दर वस्त्र और कहाँ तन ढकने के लिए पहना हुआ मैलाकुचला कपड़ा .! -
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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