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________________ __तृतीय भाग) (१२५ बांध दी। चन्दना की चोटी बांधते सेठ को मूला ने, ऊपर छज्जे से देख लिया। फिर तो पूछना ही क्या था ! उसकी आशका पक्की हो गई । अगर उसने सेठ से उसी समय पूछ लिया होता या पूरी घटना देख ली होती तो सेठानी को वहम न होता । किन्तु जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि । वहमी मनुष्य विचार नही कर सकता। बेचारी निर्दोष चन्दना अब सेठानी के दिल मे चुभने लगी । वह सोचने लगी-'इस विघ्न का जल्दी ही सफाया कर डालना चाहिए । अन्यथा यह मेरी सौत होकर जम जायगी। तो क्या इसे जहर पिलाकर मार डालूं? नहीं, ऐसा नही । मार डालने की अपेक्षा कुरूप बना देता ठीक होगा। ऐसा करने से सेठ इसे चाहेगा ही नही ।' इस प्रकार विचार करके और एक दिन मौका देखकर उसो चन्दना को बुलाया । उसे खरी-खोटी सुनाई। सिर मुंड दिया । पैरो में बेडियाँ पहना दी। फिर अन्तिम कोठरी में उसे ले गई। खूब भीतरी मारमारी और कोठरी मे बद कर दी। इतना सब करके सेठानी अपने मायके चल दी। तीन दिन बीत गये। चन्दना को न अन्न मिला, न पानी मिला । उसका गला सूख गया था। शरीर क्षीण हो गया था। मौत ताक रही थी। मगर ऐसी दुर्दशा के समय भी उसके मुंह मे हाय-हाय नही थी। नमस्कार मत्र का वह जाप कर रही थी। आ । कितना भीषण कष्ट | कितना घोर
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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