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________________ ११४) ( जैन पाठावली (७) गरीर की हड्डियों के बन्धनो की विशिष्ट रचना करने वाला सहनन नामकर्म है, इसके ६ भेद है । (८) शरीर की विभिन्न आकृतियो का जो कर्म निमित्त रूप है, वह सस्थान नामकर्म है और इसके ६ भेद हैं । " ( ९ ) शरीरगत पाच वर्णों ( काला, नीला, लाल, पीला और सफेद ) का जो नियामक है, वह वर्ण नामकर्म है और उसके ५ भेद हैं । (१०) गरी रगत दो गध ( सुगंध और दुर्गंध ) का नियामक गंध नामकर्म है और इसके २ भेद हैं । ११) शरीरगत ५ रस ( कडुआ, कसायला, तीखा, खट्टा और मीठा ) का नियामक रस नामकर्म है, और इसके ५ भेद हैं । ( १२ ) शरीरगत ८ स्पर्श ( हलका, भारी, ठढा, गरम, रूक्ष, चिकना, खरदरा, मुलायम ) का नियामक स्पर्श नाम कर्म है और इसके ८ भेद है । (१ नवीन जन्म ग्रहण करने वाले जीव को आकाशप्रदेश की श्रेणी अनुसार गमन कराने वाले कर्म का नाम आनुपूर्वी नामकर्म है । उसके ४ प्रकार है । (१४) अच्छी अथवा बुरी चाल का नियामक कर्म विहायोगति है और इसके २ भेद है । ܐ १५ से २४ त्रस दशक ( १ त्रस, २ बादर, ३ पर्याप्त, ४ प्रत्येक ५ स्थिर, ६ शुभ, ७ सुस्वर, ८ सुभग, ९ आदेश, १०
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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