SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 92
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पिपासा-परिपह-प्यास का परिसहन । पीछी-देखें-पिच्छी। पीतलेश्या-देखें-तेजोलेश्या। पुण्य-शुभ कर्म पुद्गल ; सत्कर्म । पुद्गल-भौतिक द्रव्य । पुद्गल-परावर्त-समस्त पुदगल-द्रव्यो के साथ संयोग-वियोग। पुरस्कार-सम्मानमूलक व्यवहार । पुराण-ऐतिहासिक एव पारम्परिक तथ्यों के आधार पर तत्त्व-चिन्तन का निरूपण । पुरुषार्थ-व्यक्ति का रुचिपूर्ण चेष्टाजन्य व्यवहार । पूजा-पुरुषोत्तम की अर्चना । पूर्वानुपूर्वी क्रमशः की जाने वाली प्ररूपणा । पृच्छना-शास्त्रीय तथ्यो के सन्दर्भ में पूछताछ करना । पृथक्त्व-तीन से आगे और नौ से पूर्ववती सख्या जैसे चार, पाँच आदि । पृथिवीकायिक-पृथ्वी को शरीर रूप से ग्रहण करने वाले जीव । पैशून्य-परोक्ष रूप से किया जाने वाला दोषारोपण । [ ४]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy