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________________ क्षपकश्रेणी - मोहनीय आदि कर्मों की विनाश की पद्धति । क्षपण - तपश्चर्या विशेष । ध्यान आदि के द्वारा कषायो की समूल समाप्ति । क्षमा-धर्म का पहला अंग ; क्रोध - कालुष्य का अन्त । क्षमापण - कृद, कारित और अनुमोदित अपराधो की गुरुजनो एवं साधर्मी बन्धुओ से क्षमा-प्रार्थना । क्षमापन - पर्व - सावत्सरिक पर्व मैत्री दिवस । 3 क्षमाश्रमण - प्रबुद्ध एवं उपशान्त मुनि की उपाधि - विशेष । क्षय - कर्मों की आत्यन्तिक निवृत्ति | क्षयोपशम - कर्मों के कुछ अंश का विनाश और कुछ अंश का C दमन । क्षयोपशम- सम्यक्त्व --- मिथ्यात्व सम्बन्धी कर्मों के विनाश एवं दमन से उत्पन्न होने वाला तत्त्वार्थ श्रद्धान | क्षान्ति - क्षमा ; क्रोध का अभाव । क्षायिक - शुद्ध आत्म-परिणाम ; कर्म विनाश से उत्पन्न होने वाला भाव । क्षायिक उपभोग-उपभोगान्तराय कर्म के क्षय से उपलब्ध यथेष्ट उपभोग - सामग्री । [ ४१ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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