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________________ आयुकर्म-जीवन-परिणाम का आधार ; आत्मा को शरीर में रोके रखने वाला कर्म। आरम्भ-हिमक-प्रवृत्ति । आरम्भ-समारम्भ-जीव-विराधना । आराधना-१. अहंद-भक्ति, २. आत्म-रमण । आरोह-शरीर की ऊंचाई । आजच-सरल सव्यवहार । मातध्यान-इष्ट वियोग और अनिष्ट सयोग से होने वाली वेदयुक्त मनःस्थिति। आर्या-१. प्रबुद्ध महिला, २. साध्वी । आर्यिका-प्रवजित साध्वी , अजिका । आलोचना-अपने दोपो का विनम्र प्रकटीकरण । आवरण-अशान आदि दोषी का कारणभूत कर्म । आवर्तन-हिमादि प्रवृत्तियो से हटकर सामायिक आदि में प्रवृत्ति । आवली-क्षेत्र या समय का मापक आधार , असख्य समयों का समूह। आवश्यक-नित्य करणीय प्रतिक्रमण आदि कर्तव्य । आशातना-मर्यादा के विपरीत वर्तन । [ २० ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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