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________________ अपतव्यमभंगी का चौथा भंग ; अभिव्यक्ति में अशक्य पदार्थ। अयगान-धान ; द्रव्यों का आश्रय-दाता। अग्रगाहना-१. आधारभूत बाकाश क्षेत्र २. आत्म-प्रदेश में या उत्कृष्ट योर न्यून स्थिति । अपमान्द्रियो द्वारा सामान्य का ग्रहण या सामान्य ज्ञान भी उत्पत्ति से पूर्व की अवस्था । वधिमाल-द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की मर्यादा के अन्तर्गत पद यो सथा उनके कुछ सक्ष्म भावो को प्रत्यक्ष करने पाना शान विशेष । मोदी-यून बाहार-विषयक अभिग्रह ; आहार की अपेक्षा भ पटोनी : भग्न से कम दाना ऊनोदरी। पवतपिणी-मनफ फालचक का एक भाग; काल यदा-दमोटापोटि मागरोपमा माय-बापास प्रादि से व्यक्ति या वस्तु का बोध । पिनाभापyो मिति का अचूक साधन । अमित.परप्रि-जोश गुपस्णन, जिनशासन के प्रति भधि - रिमामा से लगाव का अभाव ।
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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