SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिनिबोध-इन्द्रिय और मन से विषय बोध, मतिशान का दूसरा नाम । अभिनिवेश-अहंकारमूलक क्रिया। अभिमान-मान-कषाय के उदय से होने वाला अहं-भाव । अभीक्षण ज्ञानोपयोग-स्वतत्त्वज्ञान में सतत् तत्परता । अभूतार्थ-असत्यार्थ विषय की अविद्यमानता। अभेद-द्रव्य और गुण का साम्य । अभेदोपचार-एकत्व का आरोपण । अभ्यन्तर-इन्द्रिय-मन । अभ्यन्तर-ग्रन्थ-कषाय भाव । अभ्यन्तर-तप-मन को नियन्त्रित करने वाली तपस्यामूलक साधना। अभ्याख्यान-दोषारोपण, दोष न होते हुए भी दोष कहना। अमनस्क-असशी ; मन-रहित जीव । अमनोज्ञ-अप्रिय-अरुचिकर वस्तु । अमूढ़ दृष्टि-तत्वों के प्रति अभ्रान्त-दृष्टि । अमूर्त-इन्द्रियो से अग्राह्य द्रव्य । अयन-१. छह माह का एक काल प्रमाण २. सूर्यगति । अयोग-केवली-चौदहवाँ गुणस्थान ; साधक की आखिरी [ १३ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy