SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सरस्वती-जिनवाणी। सरागचारित्र-निश्चय चारित्र का साधन ; साधु-जीवन स्वीकार करने के बावजूद रागादिवश अपवाद-मार्ग की स्वीकृति । सरागसंयम-हिंसा आदि से निवृत्ति । देखें-सरागचारित्र । सर्वज्ञ-जिनभगवान , सर्व पदार्थो/पर्यायो का ज्ञाता । सर्वतोभद्र-सभी प्रकार से सुखी , चक्र-विशेष ; यन्त्र-विशेष ; शुभ और अशुभ के ज्ञान का साधनभूत एक चक ; देवों का विमान विशेष । सर्वदर्शी-अरिहन्त ; समस्त वस्तुओ के पारदर्शी। सर्वविरतिपूर्ण संयम ; पापकर्म से पूर्णतया निवृत्ति । सर्वार्थ-अहोरात्र का उनतीसवाँ मुहूर्त ; एक सर्वश्रेष्ठ अनुत्तर देव-विमान । सर्वार्थसिद्धि-देखें-सर्वार्थ । सर्वोदय-तीर्थ-प्रत्येक प्राणी के अभ्युदय का कारण । सल्लेखना/संलेखना-अनशन व्रतपूर्वक शरीर त्याग का अनुष्ठान । संवत्सर-वर्प। [ १३०
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy