SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 126
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शक्ति–सामर्थ्य , अन्तराय कर्म के क्षय से वीर्य-प्राप्ति । शक्ति-जागरण-शक्ति के दुरुपयोग को रोकना; शक्ति को जगाना, उसे अलग करना । शक्रस्तव-इन्द्र द्वारा की जाने वाली तीर्थकर-स्तुति । शंका-सन्देह , जिन-प्रवर्तित तत्त्व-चिन्तना के प्रति सशय । शबरी-कायोत्सर्ग का एक दोष , हाथ से गुह्य प्रदेश को ___ढाँककर कायोत्सर्ग करना, भील । शबल-प्रदूषित चरित्र पालने वाला साधु । शब्दनय-शब्द के वाच्यभूत वर्तमान अर्थ को ग्रहण करने वाला नय ; शब्दार्थ का ग्राहक । शय्यातर-वह स्थान या घर, व्यक्ति, जहाँ साधु ठहरा हो। शय्यासन-साधु के बैठने-सोने के उपकरण ; फलक, पाटा आदि । [ ११८ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy