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________________ मार्गणा - धर्म या गुरु की गवेषणा ; ऊहापोह । मार्गरुचि - जिन - प्रवर्तित धर्म के श्रवण मात्र से उत्पन्न होने वाली तत्त्व श्रद्धा । मार्गणास्थान - जीव के अन्वेषण के चौदह धर्म - गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, सयम, दर्शन, लेश्या भव्यत्व, सम्यक्त्व संज्ञित्व, आहारकत्व । मार्दव - अभिमान - रहित मृदु परिणाम । मिथ्याचारित्र - अशुभ प्रवृत्ति । मिथ्यात्व - तत्त्व पर अश्रद्धा ; सत्य-धर्म का अविश्वास, चौदह गुणस्थानों में प्रथम | मिथ्यादृष्टि - यथार्थ धर्म में अरुचिशील | मिश्र - तीसरा गुणस्थान, सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्व का मिश्रण, दो भिन्न / विपरीत तत्त्वो का मेल । मुक्त - द्रव्य-बन्ध एव भाव-बन्ध से रहित । मुक्ति-प्राण-विषयक और इन्द्रिय विषयक असंयम का त्याग ; मोक्ष । [ १०० ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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