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________________ योगी सगरराज | A गा रहा है ? विचार करते हुए अपने राज्य महल में प्रवेश कर चुके थे । यौवन के वेग से उन्मत्त सुन्दरियोंने उनकी ओर सस्नेह देखा, मधुर भावकी झंकार रठी, वे उनके स्नेहबंधन में जकड़ गए । [ ८५ HKHI ( २ ) योगीराज चतुर्मुखजी नगर के उद्यानमें पधारे थे । उनका कल्याणकारी उपदेश सुनने के लिए नगरकी जनता एकत्रित होकर जी रही थी । सम्राट् सगरने भी उनका आना सुना, वे उनके उपदेशसें वंचित रहना नहीं चाहते थे, मंत्रियों और सभासदोंके साथ वे योगीराजका उपदेश सुनने गए। - मणिकेतु नामक देव भी उनका उपदेश सुनने आया था, वह राजा सगरका पूर्वजन्मका साथी था, उसने इन्हें देखा और पहिचाना । पूर्व स्नेह के तार करित हो उठे । पूर्वजन्मकी वे क्रीड़ाएं, विनोद लीलाएं और स्नेह वाताएं हृदय- पटल पर अंति हो उठीं। उसे वह प्रतिज्ञा भी याद आई जो उन्होंने एक समयकी थी । कितना मधुमय समय था, वह दोनों वसंतकी लीला देख रहे थे, अचानक एक वृक्षपातसे उनका विनोद भंग हो उठा था, उस समय उन दोनोंने अपने परलोक के संबंध में सोचा था । फिर उन्होंने आपसमें निर्णय दिया था। हम लोगों को भी यह वर्गका स्थान छोड़ना होगा तब जो व्यक्ति मानव शरीर धारण करेगा देवस्थानमें रहनेवाले देवका कर्तव्य होगा कि संसारकी मायामें मम होनेवाले उस अपने मित्रको आत्मकल्याण के पथ पर चलाने का प्रयत्न करे । आज मणिकेतुके साम्हने वह प्रतिज्ञा प्रत्यक्ष होकर खड़ी थी । उसने सोचा
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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