SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Ram mwwwwwcomimmammemoraanemawraanuman जैन पुग-निर्माता। चमत्कारिणी ज्ञान शक्ति थी। अपनी अपूर्व प्रतिमाके बलपर साकस्था ही उन्होंने अनेक विद्याओं और कलाओं को प्राप्त कर लिया। विद्या और कलाप्रेमी होनेके अतिरिक्त वे नम्रता, दयालुता पादि अनेक सद्गुणों से युक्त थे। युवा होनेपर उनका शरीर अत्यन्त दृढ़ और तेजपूर्ण दति होने लगा। वे अतुल बलशाली थे। उनके संपूर्ण मुडौल मग देखनेवालेके मनको भाकर्षित करते थे। युक ऋषभने अब यौवन के क्षेत्रमें अपना पैर बढ़ाया था। पूर्ण यौवन-संपन्न होने पर भी काम उनके पवित्र हृदयमें प्रवेश नहीं कर सका या। विषयविकारसे थे जकमें कमलकी तरह निर्लिप्त थे। उनका संपूर्ण समय जनसेवा, ज्ञान विकास और परोपकारमें ही व्यतीत होता था। सेवा और परोपकार द्वारा उन्होंने अयोध्याकी संपूर्ण जनताके हमयपर अपना अधिकार जमा लिया था। वे अपने प्रत्येक क्षणका सदुपयोग करते थे। सदाचार और पवित्रता उनके मंत्र थे और जनसेवा उनका कर्तव्य था। कुमारऋषभको यौवन पूर्ण देखकर नाभिरायको उनके विशाहकी चिता हुई। यद्यपि वे नानते थे कि कुमार ऋषभ काम जयी है। किन्तु उनका योग्य विवाह संस्कार कर देना वे अपना कर्तव्य समझते थे। यह भलीभांति जानते थे कि गृहस्थ जीवनको भलीभांति संचालन करनेके लिए विवाह भत्यंत भावश्यक है । जीवन संग्राममें विजय पानेके लिए प्रत्येक व्यक्तिको एक योग्य साथी भाव होता है। इसलिए कुमार बापमके लिए मुम्प कन्यारस्नको खोनमें रहने गे!
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy