SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महापुरुष जम्बूकुमार । [३०५ हृदय भाजीवन भविवाहित रहकर विश्व कल्याण करनेका था। उनकी भावनाएं महान थीं। वे अपनी शक्ति का वास्तविक उपयोग करना चाहते थे। वे चाहते थे जीवनका प्रत्येक क्षण संसारका मार्गदर्शक बने । जातको सद्धर्मका संदेश सुनानेको उनकी इकट अभिलाषी थी। माता पिता उनके विचारों से परिचित थे, लेकिन वे शीघ्रत शीघ्र ई वैवाहिक बंधनों में बंधा हुमा देखना चाहते थे । उनके विचारों को सहयोग मिला । श्रेष्ठी सागादत्त, कुबेग्दत्त, वैश्रवणदत्त और श्री दत्तने उनपर अपना प्रभाव डाला । चारों ने उन्हें चारों ओरसे बांधना चाहा अंतमें वे फिल हुए । जानु कुमार की हार्दिक मनोभावनाओं को जानते हुए भी ऋषभदत्तने उ विवाहका वचन दे डाला। उनका विवाह शीघ्र ही होने वाला था किन्तु इसी समय इसके बीच में एक घटनाने रंगमें भंग कर दिया। केलपुरके आजा मृग ङ्क थे । उनकी सुदरी कन्या विलासवतो का वाग्दान राजा बिच सासे हो चुका था। राजा मृगाङ्क उन्हें अपनी कन्या देनेको तैयार थे । कन्या भी उन्हें हृदयमे अपना पति स्वीकार कर चुकी थी । यह विवाह सम्बन्ध शीघ्र ही होनेवाला था। इसी समय एक और घटना घटी। रत्नचूल एक अभिमानी युवक था । गजा मृगांक पर उसकी शक्तिका प्रभाव था । वह था भी शक्तिशाली, उसने अपनी शक्तिसे विलासवतीको अपनी पत्नी बनाना चाहा। उन्होंने राज मृगांकके पास अपना संदेश भेजकर विकासवतीको अपने लिए मांगा । मृगांक २०
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy