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________________ उस से विरुद्ध तो होन का ही नहीं जब यह पक्ष सिद्ध हुआ तव पुरुषार्थ और जीव की स्वतंत्रता यह दोनों ही बातें जाती रहेंगी। ___ इस शंका का समाधान यह है कि-निश्चय और व्यवहार यह दो पक्षमाने जाते हैं निश्चय नय के पक्ष पर जव हम विचार करते हैं तव यह भली भाँति सिद्ध हो जाता है कि सर्वज्ञ आत्मा अपने ज्ञानात्मा द्वारा तीनों काल के भावों को यथावत् जानते और देखते है परन्तु उनका ज्ञान हमारी क्रियाओं का प्रतिबंधक नही माना जा सकता जैसे सूर्य का प्रकाश हमारी क्रियाओं का प्रतिबंधक नही है तथा हमें यह भी निश्चय नहीं है कि-उन्हों ने हमारे लिये क्या देखा हना है जैसे एक अध्यक्ष के पास किसी व्यक्ति का प्रतिवाद चलागया तब वह व्यक्ति सर्व प्रकार से उसको अपने अनुसार कराने में चेष्टा करता है परन्तु अध्यक्ष ने जो आशा उसको सुनानी है वह जानता है और उसकी चेताओं की श्रोर भी ध्यान रखता है । अपितु जव उस व्यक्ति को यह निश्चित ही होजाए, कि अमुक प्रकार से प्राज्ञा सुनाई जाएगी तव उसकी इच्छा है कि यह चेष्टा करे या न करे । सो इसी प्रकार जव श्री भगवान् अपने ज्ञान में जानते और सब भावों को देखते है तो वे भली प्रकार से देखें किन्तु अस्मदादि व्यक्तियों को तो विदित नहीं है कि उन्हों ने हमारे लिये कौन से भाव देखे हुए हैं। अतएव निश्चय नय के द्वारा सिद्ध हुआ कि जिस प्रकार अर्हन् वा सिद्ध प्रभु ने सर्व भावों को देखा है वे भाव उसी प्रकार से परिणत होते हैं परन्तु व्यवहार पक्ष में उन्हों ने हमारे लिये किन २ भावों को देखा है इस वात का पता न होने से अस्मदादि को योग्य है कि हम शुभ क्रियाओ की ओर ही प्रवृत्ति करें। तथा जिस प्रकार कोई व्यक्ति काल चक्र से बाहिर नहीं हो सकता अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति द्वादश मासो के अन्तर्गत ही चेष्टा करता रहता है परन्तु उस व्यक्ति को काल चक्र की अपेक्षा से बंदी पुरुष (कैदी) नहीं कहा जा सकता वा कोई भी व्यक्ति लोक से वाहिर नहीं जा सकता तो फिर उन व्यक्तियों को लोक की अपेक्षा कारागृह मे रहने वाले पुरुष नहीं कहा जा सकता इस प्रकार अर्हन् वा सिद्धात्मा के ज्ञान में सव चेष्टा देखी जाने पर जीव की स्वतंत्रता भंग नहीं हो सकती है। यदि इस बात पर यह शंका उत्पादन की जाए की जो कुछ ज्ञानी ने अपने ज्ञान में देखा है वह अवश्यमेव हो जाएगा तो फिर पुरुषार्थ करने की क्या आवश्यकता है ? इसके उत्तर में कहा जा सकता है कि उन्होंने क्या देखा है, क्या तुम यह बतला सकते हो ? यदि नहीं बतला सकते तो तुमको पंडित पुरुपार्थ द्वारा कर्मक्षय करने की ओर ही झुक जाना चाहिए। साथमें यह भी कहा जा सकता है कि-कर्मो के शुभाशुभफल अवश्य
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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