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________________ ( २३७ ) ७ निश्चय नय के मत से पद ही द्रव्य सक्रिय हैं, किन्तु व्यवहार नय के मत से जीवद्रव्य और पुद्गलद्रव्य ये दोनों ही द्रव्य सक्रिय हैं, शेष चार द्रव्य अक्रिय हैं । .' ! ८ निश्चय नय के मत से षट् द्रव्य नित्य भी हैं और अनित्य भी हैं; किन्तु व्यवहारनय के मत से जीव और पुद्गल की अपेक्षा से ये दोनों द्रव्य, अनित्य हैं, शेष चार द्रव्य नित्य हैं। ६ छः ही द्रव्यों में केवल एक जीव द्रव्य कारण है, शेष पांच द्रव्य अकारण हैं। १० निश्चय नय के मत से छः ही द्रव्य कर्त्ता हैं किन्तु व्यवहार नय के मत से केवल एक जीव द्रव्य कर्त्ता है, शेष पांच द्रव्य ११ छः ही द्रव्यों में केवल एक आकाशद्रव्य सर्वव्यापी है, शेप पांच द्रव्य लोक मात्र व्यापी हैं । कर्त्ता हैं। ६ 1. • १२ एक क्षेत्र में षद्रव्य एकत्व होकर ठहरे हुए हैं, किन्तु गुण सच का पृथक् २ है अर्थात् गुण का परस्पर संक्रमण नही होसकता । अव एक २ में आठ २ पक्ष कहते हैं । जैसेकि— नित्य १, अनित्य २, एक ३, अनेक ४, सत्य ५, असत्य ६, वक्तव्य ७, और अवक्तव्य ८ । अव नित्य नित्य पक्ष विषय कहते हैं । धर्मास्तिकाय के चार गुण नित्य है । पर्याय में धर्मास्तिकाय -स्कन्ध नित्य है । देश, प्रदेश, अगुरुलघु अनित्य है; इस प्रकार कहना चाहिए। अधर्मास्तिकाय के चार गुण-स्कंध लोक प्रमाण नित्य है, देश प्रदेश अगुरुलघु अनित्य हैं । आकाशास्तिकाय के चार गुण-स्कन्ध लोकालोक प्रमाण नित्य हैं। देश, प्रदेश अगुरुलघु अनित्य है । कालद्रव्य के चार गुण नित्य हैं चार पर्याय अनित्य हैं। पुद्गलद्रव्य के चार गुण नित्य हैं, चार पर्याय अनित्य हैं, किन्तु जीव द्रव्य के चार गुण और पर्याय नित्य है किन्तु अगुरुलघु नित्य हैं । एक और अनेक पक्ष विस्तार से कहा जाता है जैसेकि - धर्म और अधर्म २ द्रव्य इन का स्कन्ध लोक प्रमाण एक है, किन्तु गुण, पर्याय और प्रदेश अनेक हैं। जैसेकि गुण और पर्याय तो अनंत हैं, किन्तु प्रदेश असंख्यात है । आकाश द्रव्य का स्कन्ध लोकालोक प्रमाण एक है, गुण पर्याय और प्रदेश अनेक है । जैसेकि - गुण और पर्याय तो अनंत होते ही हैं किन्तु आकाशद्रव्य लोकालोक प्रमाण होने से उस के प्रदेश भी अनंत है । काल द्रव्य का वर्त्तनारूप गुण तो एक है, किन्तु गुण, पर्याय और समय अनेक हैं । जैसेकि - गुण अनंत और पर्याय अनन्त तथा समय अनंत । यथा -- भूत काल के अनंत समय व्यतीत हो चुके और अनागत काल के अनंत समय व्यतीत
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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