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________________ ( २२० ) २ सचित्तविधान-न देने की बुद्धि से निर्दोष पदार्थों पर सचित्त पदार्थ रख देने अर्थात् दुग्ध के भाजन को जल के भरे भाजन से ढाँप देना इसी प्रकार अन्य पदार्थों के विषय में भी जान लेना चाहिए। ३ कालातिक्रम-भिक्षादि का समय अतिक्रम होजाने के पीछे साधु को आहारादि की विज्ञप्ति करनी और मन में यह भाव रख लेना कि-अकाल में तो इन्होंने भिक्षा को जाना ही नहीं। अतः विज्ञप्ति करके भावों से लाभ उठालो। ४ परव्यपदेश- न देने की बुद्धि से साधु के सन्मुख कथन करनाकिहे भगवन् ! अमुक पदार्थ मेरे नहीं हैं; अपितु अन्य के हैं ताकि साधु उन को न मांग सके । क्योंकि-जो साधारण पदार्थ होते हैं, साधु उनको भी विना सबकी सम्मति नहीं ले सकते, फिर जो केवल हैं ही दूसरों के, वह पदार्थ साधु किस प्रकार ले सकते हैं ? वृत्तिकार लिखते हैं कि परव्यपदेशः-परकीयमेतत् तेन साधुभ्यो न दीयते इति साधुसमक्ष भणनम्, जानन्तु साधवी यद्यस्यैतद्भक्तादिकं भवेत्तदा कथमस्मभ्यं न दद्यात् ? इति साधुसम्प्रत्ययार्थ भणनं अथवा अस्माद्दानात्मम मात्रादेः पुण्यमस्त्विति भणनमिति । अर्थ प्राग्वत् । सो न देने की बुद्धि से निज पदार्थों को पर के बतलाना यह भी एक अतिचार है। ५ मत्सरिता-अमुक गृहस्थ ने इस प्रकार दान दिया है तो क्या मैं उससे किसी प्रकार न्यूनता रखता हूं? नहीं, अतः मैं भी दान दूंगा। इस प्रकार असूया वा अहंकार पूर्वक दान करना पांचवाँ अतिचार है। सो उक्त पांचों अंतिचारों को छोड़ कर अतिथिसंविभाग व्रत शुद्ध पालन करना चाहिए। इस प्रकार श्रावक को सम्यक्त्वपूर्वक द्वादश व्रत पालन करने चाहिएं। यदि इन का विशेष विस्तार देखना हो तो जैन-शास्त्रों का अध्ययन करना चाहिये । क्योंकि इस स्थान पर तो केवल संक्षेप ही वर्णन किया गया है। जिस प्रकार समुद्र तैरने के लिये यानपात्र मुख्य साधन होता है वा वायुयान के लिये वायु साधन होता है, गति के लिये धर्म साधन होता है अथवा कर्ता को प्रत्येक क्रिया की सिद्धि में करण सहायक बनता है और कर्ता की कर्म सिद्धि की क्रिया में करण सहायक माना गया है, ठीक उसी प्रकार संसार समुद्र से पार होने के लिये मुख्य साधन श्रावक के तीन मनोरथ प्रतिपादन किये गए हैं जैसेकि-- तिहिं ठाणेहिं समणोवासते महानिजरे महापञ्जवसाणे : भवति तंजहा-कया ण महमप्पं वा बहुयं वा परिग्गहं परिचइस्सामि १ कया णं अहं
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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