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________________ ( २१५ ) 'सम' भाव रखने से आत्मा को ज्ञान दर्शन और चारित्र का सम्यग्तया श्राय' लाभ होजायगा। जिस समय आत्मा सम्यग्ज्ञानदर्शन और चारित्र से 'इकण्' एक रूप होकर ठहरेगा उस समय को विद्वान् ‘सामायिक' काल कहते हैं । सो जबतक आत्मा को सामायिक के समय की प्राप्ति पूर्णतया नहीं होती तब तक अात्मा निजानन्द का अनुभव भी नहीं कर सकता । सो निजानन्द को प्रकट करने के लिये, समतारस का पान करने के लिये, आत्मविशुद्धि के लिये, दैनिक चर्या के निरीक्षण के लिये. अात्मविकाश (स) के लिये प्रत्येक श्रावक को दोनों समय सामायिक अवश्यमेव करनी चाहिए । सामायिक व्रत करने के वास्ते चार विशुद्धियों का करना अत्यन्त आवश्यक है । जैसेकि द्रव्यशुद्ध-सामायिक द्रव्य (उपकरण) जैसे प्रासन, रजोहरणी, मुख बस्त्रिका तथा अन्य शरीर वस्त्र शुद्ध और पवित्र होने चाहिएं । जहां तक बन पड़े सामायिक का उपकरण सांसारिक क्रियाओं में नही वर्तना चाहिए। २क्षेत्रशुद्धि-सामायिक करने का स्थान स्वच्छ और शांतिप्रदान करने वाला हो । स्त्री पशु वा नपुंसक से युक्त तथा मन के भावों को विकृत करने वाला न होना चाहिए। जिस स्थान पर कोलाहल होता हो और बहुतसे लोगों का गमनागमन होता हो उस स्थान पर समाधि के योग स्थिर नहीं रह सकते । अतएव सामायिक करने वालों के लिये क्षेत्रशुद्धि को अत्यन्त श्रावश्यकता है। ३ कालशुद्धि-यद्यपि सामायिक ब्रत प्रत्येक समय किया जा सकता है नथापि शास्त्रकारों तथा पूर्वाचायों ने दो समय श्रावश्यकीय प्रतिपादन किये है लेकि-प्रातःकाल और सायंकाल । सो दोनों समय कम से कम दो दोघाटका प्रमाण सामायिक व्रत अवश्यमेव करना चाहिए। क्योंकि-जो क्रियाएँ नियत समय पर की जाती है, वे बहुत फलप्रद होती हैं। भावशुद्धि-सामायिक करने के भाव अत्यन्त शुद्ध होने चाहिएं। इस कथन का सारांश इतना ही है कि-लज्जा वा भय से सामायिक व्रत धारण किया हुआ विशेष फलप्रद नहीं हुआ करता। अतः शुद्ध भावों से प्रेरित होकर सामायिक प्रत धारण करना चाहिए। उपरोक्त सामायिक व्रत के भी पांच अतिचार हैं, जिनका जानना तो अावश्यक है किन्तु उन पर श्राचरण नहीं करना चाहिए यथा तयाणन्तरं चणं सामाझ्यस्स समणोवासएणं पञ्चअइयारा जाणियचा न समायरियव्वा तंजहा-मणदुप्पणिहाणे वयदुप्पणिहाणे कायदुप्पणिहाणे सामाइयस्स सइ अकरणया सामाझ्यस्स अणवष्टियस्स करणया ॥६॥
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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