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________________ ( १६७ ) उनकी यथोचित रक्षा न करना ये क्रियाएं हैं इन से प्रथम व्रत में दोष लगता है । अतएव उक्त पांचों प्रधान दोषों से रहित प्रथम अनुव्रत का पालन करना चाहिए। धूलाओ मुसावात्राओ वेरमणं ठाणागसू-स्थान ५ उद्देश ॥ १ ॥ जय प्रथम अनुव्रत का पालन किया जाए फिर द्वितीय अनुव्रत को शुद्धतापूर्वक पालन करना चाहिए । कारणकि - सत्यव्रत सर्व व्रतों में परम प्रधान है, आत्मविशुद्धि का परमोत्कृष्ट मार्ग है, लोक में प्रत्येक गुण का भाजन है । परन्तु सत्यव्रत के भी दो भेद हैं, जैसेकि - द्रव्यसत्य और भावसत्य । दृढ़ प्रतिज्ञा का ही नाम द्रव्य सत्य है, और जो षट् द्रव्यों के गुण पर्यायों को भली भांति जानना है तथा उन्हीं पर्यायों के अनुसार सत्य भाषण करना है उसे भावसत्य कहा जाता है । अतएव भाव सत्य के लिए ज्ञानाभ्यास वा शास्त्रश्रवण का अभ्यास अवश्यमेव करना चाहिए । सो श्रावक के सम्यक्त्व व्रत के होजाने से भावसत्य तो होता ही है, परन्तु द्रव्यसत्य के लिये शास्त्रकार ने स्थूल शब्द दे दिया है । क्योंकि - गृहस्थावास में रहते हुए गृहस्थ से सर्वथा मृपावाद का त्याग तो हो ही नहीं सकता । अतएव वह स्थूल सृषावाद का तो त्याग श्रवश्य कर दे। जैसेकि - १ कन्यालीक - कन्याओं के लिये असत्य भाषण न करे । २ गवालीक - गौ आदि पशु वर्ग के लिये असत्य न वोले । ३ भूम्यलीक - भूमि के लिये असत्य का भाषण न करे । ४ न्यासापहार - किसी ने विश्वास पात्र पुरुष जान कर विना साक्षियों के वा विना लिखत किये वस्तु को धरोहर रख दिया जब उसने वह वस्तु मांगी तो कह देना कि- मुझे तो उक्त पदार्थ की खवर ही नहीं है, न मैने उस पदार्थ को देखा है इत्यादि वातें करना । ५ कूटसाक्षी - श्रसत्य साक्षी देना इत्यादि अनेक भेद स्थूल मृषावाद के है । सो दूसरे अनुव्रत के पालन करने वाला उक्त प्रकार के असत्य भाषणों का परित्याग कर दे । फिर इस व्रत की शुद्धि के पांच प्रतिचारों (दोषों) का भी परिहार करदे | जैसेकि— तयाणन्तरं चर्णं धूलगस्स मुसावाय वेरमणस्स पश्च श्रइयारा जाणियच्चा न समायरियव्वा तंजहा - सहसा अब्भक्खाणे रहसाअब्भक्खाणे सदारमंतभए मोसोवएसे कूडलेह करणे । उपासकदशाग सू. श्र. ॥ १ ॥ भावार्थ - जब प्रथम अनुव्रत का स्वरूप अवगत हो जावे तव द्वितीय
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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