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________________ ( १२० ) ६ सत्य प्रवाद पूर्व- इस पूर्व में सत्य संयम के सविस्तर भेद दिखलाये गए हैं और उनके फलाफल का भी दिग्दर्शन कराया गया है किंतु २ इसके वस्तु है और ६ करोड़ इसके पदों की संख्या है । यद्यपि विभक्त्यन्त पद भी होता है परन्तु यहां पर अनेकान्त बाद से पद गृहीत हैं । ७ आत्मप्रवाद पूर्व- इस पूर्व में आत्मविषय वर्णन किया है अर्थात् अनेक नयों के मत से आत्म द्रव्य की सिद्धि की गई है जैसे कि - द्रव्यात्मा, कषायात्मा इत्यादि । तथा नित्य और नित्य इस प्रकार आत्म द्रव्य के अनेक भेद प्रतिपादन किये गए हैं । षोडश इस पूर्व के वस्तु हैं और २६ करोड़ इसके पदों की संख्या है । ८ कर्म प्रवाद पूर्वइस पूर्व में ज्ञानावरणीयादि आठों प्रकार के कर्मों की सविस्तर व्याख्या की गई है। साथ ही उन कर्मों का स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध तथा कर्मपरमाणुओं की संख्या जैसेकि एक आत्म प्रदेश पर आठों कर्मों की अनंत वर्गणाएं स्थित होरही हैं और वे अपनी स्थिति के अनुसार समय आनेपर फलका अनुभव कराती हैं उसीका नाम अनुभाग है । प्रत्येक कर्म की अनंत २ पर्याय हैं । सो इस पूर्व में कर्म क्या वस्तु है ? नित्य है वा अनित्य, सद्भाव में रहने वाला है वा असद्भावमें, अनादि अनंत कर्म है वा सादिसान्त, तथा कर्त्ता कर्म है वा जीव इत्यादि विषय स्फुट रीति से वर्णन किए गए हैं और इस पूर्व के ३० वस्तु हैं किन्तु एक करोड़ अस्सी लक्ष १८०००००० इसके पदोंकी संख्या है । ६ प्रत्याख्यान पूर्व——इस पूर्व में प्रत्याख्यानों के भेदोंका सविस्तर स्वरूप वर्णन किया गया है । प्रतिज्ञाओं का स्वरूप वर्णन करते हुए साथ ही उनके फलादेश का वर्णन किया गया है ॥ २० इस पूर्व के वस्तु हैं और ८४ लक्ष पदों की संख्या है । १० विद्याप्रवाद पूर्व - इस पूर्व में अनेक प्रकार की चमत्कारिक विद्याओं का वर्णन किया गया है । कहते हैं कि -स्थूलभद्रमुनि ने इसी पूर्व को पढ़ते हुए सिंह का रूप धारण किया था क्योंकि - इस पूर्व में विद्या और उसके साधन की विधि सविस्तर वर्णन की हुई है । श्रात्मिक शक्ति के उत्पन्न करने वाले अनेक साधन इसमें मिलते हैं और इस पूर्व के १५ वस्तु हैं एक करोड़ दश लक्ष ११०००००० इस के पद हैं ॥ ११९ अवध्य पूर्व - इस पूर्व में तप संयमादि के शुभफल और प्रमादादि के अशुभफल दिखलाए गए है तथा जिस प्रकार आत्मविशुद्धि हो सकती है और जिसप्रकार आत्मविशुद्धि के मार्ग से जीव पतित होता है इन विषयों का सविस्तर स्वरूप वर्णन किया गया है । १२ इसपूर्वके वस्तु और २६ करोड़ इसके पदों की संख्या है । १२ प्राणायुः प्रवाद पूर्व - इस पूर्व मैं इन्द्रिय आदि नव प्राण और आयु प्राण अर्थात् श्रोतेन्द्रिय चक्षुरिन्द्रिय, बाणेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, स्पर्शेन्द्रिय, मन, वचन, काय और श्वासोश्वास तथा आयु प्राण इस प्रकार दश प्राणों की विस्तृत व्याख्या की गई है साथ
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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