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________________ ( १०७ ) उपकरण को उत्पन्न करना है और उसके मुख्य चार भेद हैं जैसे कि--जो उपकरण अपने गच्छ में न हो उसको उत्पन्न करना १ संयम के निर्वाह के लिए जिन पदार्थों की आवश्यकता रहती है उसे उपकरण कहते हैं। जैसे कि-वस्त्र, पात्र, पुस्तकादि जो वस्त्रादि अपने गच्छ में न हो उन्हें गच्छवासी साधुओंके लिये उत्पन्न करने चाहिएं। उक्त कार्य प्राचार्य स्वयं करे किन्तु यदिअाचार्य श्रान्तहोगया हो वा उसकी स्वाध्यायादि क्रियाओ में विघ्न पड़ता हो तो शिष्य स्वयं गच्छवासी साधुओंके लिये अनुत्पन्न उपकरण को उत्पादन करे १ जो प्राचीन (पुराना) उपकरण हो उसे संरक्षित रखना चाहिए यदि उपकरण जीर्ण हो तो उसे गुप्त रखना चाहिए क्योंकि पुराणा वा जीर्ण उपकरण संरक्षित किया हुआ फिर पहिरने में आसकता है क्योंकि जीर्णादि उपकरण सोए हुए वर्षाकालादि के समय प्रयोग में आसकते हैं २ जिस साधु के पास अल्प उपकरण हों उसको अपनी निश्राय का उपकरण देदेवे जिससे उसका आत्मा स्थिर होजावे कारण कि सुरक्षित होनेसे ही गच्छका महत्व बढ़ जाता है और ऐसे सुयोग्य आचार्य के गच्छ में निवास करते हुए साधु अपना कल्याण कर सकते हैं ३ जब कभी वस्त्रादि उपकरण के विभाग करने का समय उपस्थित हो तव यथायोग्य उपकरण देना चाहिए। बड़को बड़े के योग्य औरछोटे को उसके योग्य उपकरण देना उचित है । इसी का नाम उपकरण उत्पादन विनय है ॥ अव सूत्रकार इसके अनन्तर सहायता विनय विपय कहते हैं: सेकिंतं साहिल्लया ? साहिल्लया चउबिहा पएणत्ता तंजहा-अणुलोमवह सीहतेयावि भवइ १ अणुलोमकाय किरियत्ता २ पडिरूवकाय संफासणया ३ सवत्थेसु अपडिलोया ४ सेतं साहिल्लया ॥ ___ अर्थ-(प्रश्न) सहायता विनय किसे कहते हैं ? ( उत्तर ) सहायता विनय के चार भेद हैं जैसेकि-अनुकूल वचन वोलना वावुलाना चाहिए १ अनुकूल काय द्वारा अन्य व्यक्तियों की सेवा करनी चाहिए २ जिस प्रकार अन्य व्यक्तियों को अपने द्वारा सुख पहुंचसके उसी प्रकार उनको यथाविधि सुख पहुंचाना चाहिए ३ सर्व कार्य करते हुए ऋजुता धारण करनी चाहिए अर्थात् मिथ्याभिनिवेश न करना चाहिए ॥ ४ ॥ सो इसे ही सहायता विनय कहत है। तारांश-शिष्य ने प्रश्न किया कि-हे भगवन् ! सहायताविनय किसे कहते हैं और उसके कितने भेद हैं ? इस के उत्तर में गुरु कहने लगे कि हे शिप्य ! अन्य प्राणियों को सुख पहुंचाना और उनके दुःख की निवृत्ति करना उसका नाम सहायताविनय है । इस विनय के चार भेद हैं जैसेकि-प्रत्येक प्राणी
SR No.010277
Book TitleJain Tattva Kalika Vikas Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages335
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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